१५ जुलै २०२०

राष्ट्रासाठी महिलांचे योगदान

🧩सुचेता कृपलानी...

🅾इंदिरा गाँधी ने कभी सुचेता कृपलानी के बारे में कहा था, ‘ऐसा साहस और चरित्र, तो स्त्रीत्व को इस कदर ऊँचा उठाता हो, महिलाओं में कम ही देखने को मिलता है।’ स्वतंत्रता आंदोलन के साथ सुचेता कृपलानी का जिक्र आता ही है। सुचेता ने आंदोलन के हर चरण में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया और कई बार जेल गईं। सन् 1946 में उन्हें असेंबली का अध्यक्ष चुना गया। सन् 1958 से लेकर 1960 तक वह भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस की जनरल सेक्रेटरी रहीं और 1963 में उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं।

🧩 मीरा बेन...

🅾लंदन के एक सैन्य अधिकारी की बेटी मैडलिन स्लेड गाँधी के व्यक्तित्व के जादू में बँधी साम समंदर पार काले लोगों के देश हिंदुस्तान चली आई और फिर यहीं की होकर रह गईं। गाँधी ने उन्हें नाम दिया था - मीरा बेन। मीरा बेन सादी धोती पहनती, सूत कातती, गाँव-गाँव घूमती। वह गोरी नस्ल की अँग्रेज थीं, लेकिन हिंदुस्तान की आजादी के पक्ष में थी। उन्होंने जरूर इस देश की धरती पर जन्म नहीं लिया था, लेकिन वह सही मायनों में हिंदुस्तानी थीं। गाँधी का अपनी इस विदेशी पुत्री पर विशेष अनुराग था

🧩कमला नेहरू...

🅾कमला जब ब्याहकर इलाहाबाद आईं तो एक सामान्य, कमउम्र नवेली ब्याहता भर थीं। सीधी-सादी हिंदुस्तानी लड़की, लेकिन वक्त पड़ने पर यही कोमल बहू लौह स्त्री साबित हुई, जो धरने-जुलूस मेंअँग्रेजों का सामना करती है, भूख हड़ताल करती है और जेल की पथरीली धरती पर सोती है। नेहरू के साथ-साथ कमला नेहरू और फिर इंदिरा की भी सारी प्रेरणाओं में देश की आजादी ही सर्वोपरि थी। असहयोग आंदोलन और सविनय अवज्ञा आंदोलन में उन्होंने बढ़-चढ़कर शिरकत की। कमला नेहरू केआखिरी दिन मुश्किलों से भरे थे। अस्पताल में बीमार कमला की जब स्विटजरलैंड में टीबी से मौत हुई, उस समय भी नेहरू जेल में ही थे।

🧩मैडम भीकाजी कामा...

🅾पारसी यूँ तो हिंदुस्तानी थे, लेकिन गोरी चमड़ी और अँग्रेजी शिक्षा के कारण अँग्रेजों के ज्यादा निकट थे। ऐसे ही एक पारसी परिवार में जन्मी भीकाजी कामा पर अँग्रेजी शिक्षा के बावजूद अँग्रेजियत का कोई असर नहीं था। वह एकपक्की राष्ट्रवादी और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थीं। स्टुटगार्ड जर्मनी में उन्होंने देश की आजादी पर कहा था, ‘हिंदुस्तानी की आजादी का परचम लहरा रहा है। अँग्रेजों, उसे सलाम करो। यह झंडा हिंदुस्तान के लाखों जवानों के रक्त से सींचा गया है। सज्जनों, मैं आपसे अपील करती हूँ कि उठें और भारत की आजादी के प्रतीक इस झंडे को सलाम करें।’ फिरंगी भीकाजी कामा के क्रिया-कलापों से भयभीत थे और उन्होंने उनकी हत्या के प्रयास भी किए। पर देश-प्रेम से उन्नत भाल झुकता है भला। भीकाजी कामा का नाम आज भी उसी गर्व के साथ हमारे दिलों में उन्नत है।

🧩सिस्टर निवेदिता...

🅾उनका वास्तविक नाम मारग्रेट नोबल था। उस दौर में बहुत-सीविदेशी महिलाओं को हिंदुस्तान के व्यक्तित्वों और आजादी[image]NDNDकी लड़ाई ने प्रभावित किया था। स्वामी विवेकानंद के जीवन और दर्शन के प्रभाव में जनवरी, 1898 में वह हिंदुस्तान आईं। भारत स्त्री-जीवन की उदात्तता उन्हें आकर्षित करती थी, लेकिन उन्होंने स्त्रियों कीशिक्षा और उनके बौद्धिक उत्थान की जरूरत को महसूस किया और इस
के लिए बहुत बड़े पैमाने पर काम भी किया। प्लेग की महामारी के दौरान उन्होंने पूरी शिद्दत से रोगियों की सेवा की और भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में भी अग्रणी भूमिका निभाई। भारतीय इतिहास और दर्शन पर उनका बहुत महत्वपूर्ण लेखन है, जो भारतीय उपमहाद्वीप में स्त्रियों की बेहतरी की प्रेरणाओं से संचालित है।

🧩कोकिला सरोजिनी नायडू..

🅾सिर्फ स्वतंत्रता संग्राम सेनानी ही नहीं, बल्किबहुत अच्छी कवियत्री भी थीं। गोपाल कृष्ण[image]NDNDगोखले से एक ऐतिहासिक मुलाकात ने उनके जीवन की दिशा बदल दी। दक्षिण अफ्रीका से हिंदुस्तान आने के बाद गाँधीजी पर भी शुरू-शुरू में गोखलेका बहुत गहरा प्रभाव पड़ा था। सरोजिनी नायडू ने खिलाफत आंदोलन की बागडोर सँभाली

🧩विजयलक्ष्मी पंडित..

🅾एक संपन्न, कुलीन घराने से ताल्लुक रखने वाली और जवाहरलाल नेहरू की बहन विजयलक्ष्मी पंडित भी आजादी की लड़ाई में शामिल थीं। सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लेने के कारण उन्हें जेल में बंद किया गया था। वह एक पढ़ी-लिखी और प्रबुद्ध महिला थीं और विदेशों में आयोजित विभिन्न सम्मेलनों में उन्होंने भारत का प्रतिनिधित्व किया था। भारत के राजनीतिक इतिहास में वह पहली महिला मंत्री थीं। वह संयुक्त राष्ट्र की पहली भारतीय महिला अध्यक्ष थीं। वह स्वतंत्र भारत की पहली महिला राजदूत थीं, जिन्होंने मास्को, लंदन और वॉशिंगटन में भारत का प्रतिनिधित्व किया।

🧩अरुणा आसफ अली..

🅾हरियाणा के एक रूढि़वादी बंगाली परिवार से आने वाली अरुणा आसफ अली ने परिवार और स्त्रीत्व के तमाम बंधनों[image]NDNDको अस्वीकार करते हुए जंग-ए-आजादी को अपनी कर्मभूमि के रूप में स्वीकार किया। 1930 में नमक सत्याग्रह से उनके राजनीतिक संघर्ष की शुरुआत हुई। अँग्रेज हुकूमत ने उन्हें एक साल के लिए जेल में कैद कर दिया। बाद में गाँधी-इर्विंग समझौतेके बाद जब सत्याग्रह के कैदियों को रिहा किया जा रहा था, तब भी उन्हें रिहा नहीं किया गया।ऐतिहासिक भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान 9 अगस्त, 1942 को अरुणा आसफ अली ने गोवालिया टैंक मैदान में राष्ट्रीय झंडा फहराकर आंदोलन की अगुवाई की। वह एक प्रबल राष्ट्रवादी और आंदोलनकर्मी थीं। उन्होंने लंबे समय तक भूमिगत रहकर काम किया। सरकार ने उनकी सारी संपत्ति जब्त कर ली और उन्हें पकड़ने वाले के लिए 5000 रु. का ईनाम भी रखा। उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस की मासिक पत्रिका ‘इंकलाब’ का भी संपादन किया। 1998 में उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया।

१४ जुलै २०२०

स्वतंत्रता आंदोलन से संबंधित आंदोलन एवं वर्ष....

1. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना
Ans-1885 ई.

2. बंग-भंग आंदोलन(स्वदेशी आंदोलन)
Ans-1905 ई.

3. मुस्लिम लीग की स्थापना
Ans-1906 ई.

4.कांग्रेस का बंटवारा
Ans-1907 ई.

5. होमरूल आंदोलन
Ans1916 ई.

6. लखनऊ पैक्ट
Ans-दिसंबर 1916 ई.

7. मांटेग्यू घोषणा
Ans-20 अगस्त 1917 ई.

8. रौलेट एक्ट
Ans-19 मार्च 1919 ई.

9. जालियांवाला बाग हत्याकांड
Ans-13 अप्रैल 1919 ई.

10. खिलाफत आंदोलन
Ans-1919 ई.

11. हंटर कमिटी की रिपोर्ट प्रकाशित
Ans-18 मई 1920 ई.

12. कांग्रेस का नागपुर अधिवेशन
Ans-दिसंबर 1920 ई.

13. असहयोग आंदोलन की शुरुआत
Ans-1 अगस्त 1920 ई.

14. चौरी-चौरा कांड
Ans-5 फरवरी 1922 ई.

15. स्वराज्य पार्टी की स्थापना
Ans-1 जनवरी 1923 ई.

16. हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन
Ans-अक्टूबर 1924 ई.

17. साइमन कमीशन की नियुक्ति
Ans-8 नवंबर 1927 ई.

18. साइमन कमीशन का भारत आगमन
Ans-3 फरवरी 1928 ई.

19. नेहरू रिपोर्ट
Ans-अगस्त 1928 ई.

20. बारदौली सत्याग्रह
Ans-अक्टूबर 1928 ई.

21. लाहौर पड्यंत्र केस
Ans-8 अप्रैल 1929 ई.

22. कांग्रेस का लाहौर अधिवेशन
Ansदिसंबर 1929 ई.

23. स्वाधीनता दिवस की घोषणा
Ans-2 जनवरी 1930 ई.

24. नमक सत्याग्रह
Ans-12 मार्च 1930 ई. से 5 अप्रैल 1930 ई. तक

25. सविनय अवज्ञा आंदोलन
Ans-6 अप्रैल 1930 ई.

26. प्रथम गोलमेज आंदोलन
Ans-12 नवंबर 1930 ई.

27. गांधी-इरविन समझौता
Ans-8 मार्च 1931 ई.

28.द्वितीय गोलमेज सम्मेलन
Ans-7 सितंबर 1931 ई.

29. कम्युनल अवार्ड (साम्प्रदायिक पंचाट)
Ans-16 अगस्त 1932 ई.

30.पूना पैक्ट
Ans-सितंबर 1932 ई.

31. तृतीय गोलमेज सम्मेलन
Ans-17 नवंबर 1932 ई.

32. कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी का गठन
Ans-मई 1934 ई.

33. फॉरवर्ड ब्लाक का गठन
Ans-1 मई 1939 ई.

34. मुक्ति दिवस
Ans-22 दिसंबर 1939 ई.

35. पाकिस्तान की मांग
Ans-24 मार्च 1940 ई.

36. अगस्त प्रस्ताव
Ans-8 अगस्त 1940 ई.

37. क्रिप्स मिशन का प्रस्ताव
Ans-मार्च 1942 ई.

38. भारत छोड़ो प्रस्ताव
Ans-8 अगस्त 1942 ई.

39. शिमला सम्मेलन
Ans-25 जून 1945 ई.

40. नौसेना का विद्रोह
Ans-19 फरवरी 1946 ई.

41. प्रधानमंत्री एटली की घोषणा
Ans-15 मार्च 1946 ई.

42. कैबिनेट मिशन का आगमन
Ans-24 मार्च 1946 ई.

43. प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस
Ans-16 अगस्त 1946 ई.

44. अंतरिम सरकार की स्थापना
Ans-2 सितंबर 1946 ई.

45. माउंटबेटन योजना
Ans-3 जून 1947 ई.

46. स्वतंत्रता मिली
Ans-15 अगस्त 1947 ई.

प्रश्न:- स्वतंत्र भारत के प्रथम गवर्नर जनरल कौन थे?
उत्तर:- लार्ड माउंटबेटन।

प्रश्न:- भारत के प्रथम वायसराय कौन थे?
उत्तर:- लॉर्ड कैनिंग।

प्रश्न:- भारत की प्रथम महिला राजदूत कौन थी?
उत्तर:- विजयलक्ष्मी पंडित।

प्रश्न:- भारत के प्रथम परमाणु रिएक्टर का क्या नाम है?
उत्तर:- अप्सरा।

प्रश्न:- भारत की प्रथम महिला पायलट कौन थी?
उत्तर:- प्रेमा माथुर।

प्रश्न:- भारतीय वायुसेना की प्रथम महिला पायलट?
उत्तर:- हरिता कौर देओल।

प्रश्न:- भारतीय वायुसेना का प्रथम अधिकारी जिसने परमवीर चक्र प्राप्त किया?
उत्तर:- निर्मलजीत सेंखो।

प्रश्न:- भारत की प्रथम महिला लोकसभा अध्यक्ष?
उत्तर:- मीरा कुमार।

प्रश्न:- भारत के प्रथम साम्यवादी लोकसभा अध्यक्ष कौन थे?
उत्तर:- सोमनाथ चटर्जी।

प्रश्न:- भारत के पहले मुख्य चुनाव आयुक्त कौन थे?
उत्तर:- सुकुमार सेन।

प्रश्न:- भारत के पहले गृह मंत्री कौन थे?
उत्तर:- सरदार वल्लभ भाई पटेल।

प्रश्न:- भारत के पहले रक्षा मंत्री कौन थे?
उत्तर:- सरदार बलदेव सिंह।

प्रश्न:- भारत के पहले वित्त मंत्री कौन थे?
उत्तर:- आर.के. षंमुखम चेट्टी।

प्रश्न:- भारत किए पहले केन्द्रीय शिक्षा मंत्री कौन थे?
उत्तर:- मौलाना अबुल कलाम आजाद।

भारत सरकार की योजनाएं

1. नीति आयोग - 1 जनवरी 2015
2. ह्रदय योजना -21 जनवरी 2015
3. बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओं -22 जनवरी 2015
4. सुकन्या समृद्धि योजना -22 जनवरी 2015
5. मुद्रा बैंक योजना -8 अप्रैल 2015
6. प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना -9 मई 2015
7. अटल पेंशन योजना -9 मई 2015
8. प्रधानमंत्री जीवन ज्योति योजना -9 मई 2015
9. उस्ताद योजना (USTAD) -14 मई 2015
10. प्रधानमंत्री आवास योजना -25 जून 2015
11. अमरुत योजना(AMRUT) -25 जून 2015
12. स्मार्ट सिटी योजना -25 जून 2015
13. डिजिटल इंडिया मिशन -1 जुलाई 2015
14. स्किल इंडिया मिशन -15 जुलाई 2015
15. दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना -25 जुलाई 2015
16. नई मंजिल -8 अगस्त 2015
17. सहज योजना -30 अगस्त 2015
18. स्वावलंबन स्वास्थ्य योजना - 21 सितंबर 2015
19. मेक इन इंडिया -25 सितंबर 2015
20. इमप्रिण्ट इंडिया योजना - 5 नवंबर 2015
21. स्वर्ण मौद्रीकरण योजना -5 नवंबर 2015
22. उदय योजना (UDAY) -5 नवंबर 2015
23. वन रैंक वन पेंशन योजना -7 नवंबर 2015
24. ज्ञान योजना -30 नवंबर 2015
25. किलकारी योजना -25 दिसंबर 2015
26. नगामि गंगे, अभियान का पहला चरण आरंभ -5जनवरी 2016
27. स्टार्ट अप इंडिया -16 जनवरी 2016
28. प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना -18 फरवरी 2016
29. सेतु भारतम परियोजना -4 मार्च 2016
30. स्टैंड अप इंडिया योजना - 5 अप्रैल 2016
31. ग्रामोदय से भारत उदय अभियान -14अप्रैल 2016
32. प्रधानमंत्री अज्वला योजना - 1 मई 2016
33. प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना - 31 मई 2016
34. राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन योजना -1 जून 2016
35. नगामी गंगे कार्यक्रम -7 जुलाई 2016
36. गैस फॉर इंडिया -6 सितंबर 2016
37. उड़ान योजना -21 अक्टूबर 2016
38. सौर सुजला योजना -1 नवंबर 2016
39. प्रधानमंत्री युवा योजना -9 नवंबर 2016
40. भीम एप - 30 दिसंबर 2016
41. भारतनेट परियोजना फेज - 2 -19 जुलाई 2017
42. प्रधानमंत्री वय वंदना योजना -21 जुलाई 2017
43. आजीविका ग्रामीण एक्सप्रेस योजना -21 अगस्त 2017
44. प्रधानमंत्री सहज बिजली हर घर योजना- सौभाग्य -25 सितंबर 2017
45. साथी अभियान -24 अक्टूबर 2017
46. दीनदयाल स्पर्श योजना- 3 नवंबर 2017

राजे उमाजी नाईक

(जन्म: ७ सप्टेंबर १७९१ - मृत्यू: ३ फेब्रुवारी १८३२) हे भारताला स्वातंत्र्य मिळवून देण्यासाठी ब्रिटिशांविरुद्ध लढणारे महाराष्ट्रातील प्रथम आद्यक्रांतिकारक होते

आद्यक्रांतीवीर नरवीर राजे उमाजी नाईक [खोमणे]
जन्म:
सप्टेंबर ७, १७९१
किल्ले पुरंदर,भिवडी, पुणे, ब्रिटिश भारत
मृत्यू:
फेब्रुवारी ३, १८३२
खडकमाळ आळी , पुणे, ब्रिटिश भारत
चळवळ:
भारतीय स्वातंत्र्यलढा
धर्म:
हिंदू (रामोशी)
वडील:
दादोजी खोमणे
आई:
लक्ष्मीबाई

■भारताच्या इतिहासात अनेक ऐतिहासिक घटना घडल्या आहेत काहींची नोंद झाली, काहींची दखलच घेण्‍यात आली नाही. सन १८५७ च्या उठावाअगोदरही अनेक उठाव झाले अशाच पहिल्या उठावाद्वारे इंग्रजांना सलग १४ वर्ष सळो की पळो करून सोडणारे व सर्व प्रथम क्रांतीचे स्वप्न पाहणारे महाराष्ट्रातील निधड्या छातीचे वीर आद्यक्रांतिकारक नरवीर ठरले गेले.ते म्हणजे 'राजे उमाजी नाईक'.

■३ फेब्रुवारीहा या आद्यक्रांतिकाराचा स्मृतिदिन. रामोशी-बेरड समाजाशिवाय कोणाच्याच नेहमीप्रमाणे तो लक्षात राहत नाही. त्यामुळे, राजे उमाजी नाईक फक्त रामोशी-बेरड समाजापुरते सीमित राहून गेल्यासारखे होत आहे.पण सर्व जाती-धर्माँनी हे लक्षात ठेवणे आवश्यक आहे.

■क्रांतिकारकांचा आदर आणि त्यांचे स्मरण सर्वच जातिधर्मातील लोकांनी केले पाहिजे.मग हे राजे उमाजी नाईक असे उपेक्षित का राहून गेले हे आश्चर्य आहे.. 'मरावे परि क्रांतिरूपे उरावे' अशी उक्ती आहे ती आद्यक्रांतीकारक राजे उमाजी नाईक यांच्याबद्दल तंतोतंत जुळते. ते स्वतःच्या कार्याने एक दीपस्तंभ ठरले आहेत.त्यांचा गौरव करण्यापासून इंग्रज अधिकारीही स्वतःला रोखू शकले नाहीत. इंग्रज अधिकारी कॅप्टन रॉबर्टसन याने १८२० ला ईस्ट इंडिया कंपनीला लिहिताना म्हंटले आहे, "उमाजीचा रामोशी समाज इंग्रजांविरुद्ध तिरस्काराने पेटला असून तो कोणत्या तरी राजकीय बदलाची वाट पाहत आहे.जनता त्यांना मदत करत असून कोणी सांगावे हा उमाजी राजा होऊन छत्रपती शिवाजी सारखे राज्य स्थापणार नाही?" तर [ मॉकिनटॉस]म्हणतो, "उमाजीपुढे छत्रपती शिवरायांचा आदर्श होता.त्याला फाशी दिली नसती तर तो दुसरा शिवाजी झाला असता." हे केवळ गौरवोद्गार नसून हे सत्य आहे ... जर इंग्रजांनी कूटनीती आखली नसती तर कदाचित तेव्हाच भारताला स्वातंत्र्य लाभले असते.

°आद्यक्रांतिवीर नरवीर राजे उमाजी नाईक

■उमाजीराजे नाईक यांचा जन्म रामोशी-बेरड समाजात लक्ष्मीबाई व दादोजी खोमणे यांच्या पोटी ७ सप्टेंबर १७९१ रोजी पुणे जिल्ह्यातील किल्ले पुरंदर येथे झाला.वडिल दादोजी खोमणे पुरंदर किल्ल्याचे वतनदार होते.त्यामुळे उमाजीराजेंचे कुटुंब पुरंदर व वज्रगड किल्ल्याच्या संरक्षणाची जबाबदारी पार पाडत होते. त्यामुळेच त्यांना नाईक ही पदवी मिळाली होती. उमाजीराजे जन्मापासूनच हुशार, चंचल, शरीराने धडधाकट, उंचापुरे आणि करारी होते. त्यांनी पारंपरिक रामोशी हेर कला लवकरच आत्मसात केली. जसे उमाजीराजे मोठे होत गेले तसा त्यांनी वडील दादोजी नाईक यांच्याकडून दांडपट्टा, तलवार, भाला, कुऱ्हाडी, तीरकमठा, गोफण वगैरे चालवण्याची कला अवगत केली. या काळात इंग्रजांनी भारतात आपली सत्ता स्थापन करण्यास सुरुवात केली होती. हळूहळू मराठी मुलुख जिंकत त्यांनी पुणे ताब्यात घेतले. इ.स. १८०३मध्ये पुण्यात दुसऱ्या बाजीराव पेशव्यास स्थानापन्न केले आणि त्याने इंग्रजांचा पाल्य म्हणून काम सुरु केले. सर्वप्रथम त्याने इतर सर्व किल्ल्यांप्रमाणे पुरंदर किल्ल्याच्या वतनदारीचे व संरक्षणाचे काम रामोशी समाजाकडून काढून घेऊन आपल्या मर्जीतील लोकांकडे दिले.त्यामुळे रामोशी समाजावर उपासमारीची वेळ आली. जनतेवर इंग्रजी अत्याचार वाढू लागले. अशा परिस्थितीत करारी उमाजीराजे बेभान झाले. छत्रपती शिवरायांना श्रद्धास्फूर्तीचे स्थान देत त्यांचा आदर्श घेऊन स्वतःच्या अधिपत्याखाली स्वराज्याचा पुकार करत माझ्या देशावर परकीयांना राज्य करू देणार नाही, असा पण करत विठोजी नाईक, कृष्ण नाईक, खुशाबा रामोशी, बाबू सोळसकर यांना बरोबर घेऊन कुलदैवत जेजुरीच्या श्री खंडोबारायाला भंडारा उधळत शपथ घेतली व इंग्रजांविरोधात पहिल्या बंडाची गर्जना केली.

■उमाजीराजे नाईक यांनी इंग्रज, सावकार,मोठे वतनदार अशा लोकांना लुटून गोरगरिबांना आर्थिक मदत करण्यास सुरवात केली. कोणत्याही स्त्रीवर अत्याचार अन्याय झाल्यास तर ते भावासारखा धावून जाऊ लागले. इंग्रजांना त्रास दिल्यामुळे उमाजीराजेंना सरकारने इ.स. १८१८मध्ये एक वर्ष तुरुंगवासाची शिक्षा दिली. परंतु तो काळ सत्कारणी लावत त्यांनी त्याकाळात तुरंगात लिहिणे वाचणे शिकले .या घटनेचे इंग्रज आधिकारी कॅप्टन मॉकिनटॉस याने फार आश्चर्य व कौतुक केले.आणि तुरूंगातून सुटल्यानंतर इंग्रजांविरुद्धाच्या त्यांचा कारवाया आणखी वाढल्या. उमाजीराजे देशासाठी लढत असल्याने जनताही त्यांना साथ देऊ लागली आणि इंग्रज मेटाकुटीला आले. उमाजीराजेंना पकडण्यासाठी इंग्रज अधिकारी मॉकिनटॉस याने सासवड-पुरंदर च्या मामलेदारासफर्मान सोडले. मामलेदार इंग्रजी सैन्य घेऊन पुरंदरच्या पश्चिमेकडील एका खेड्यात गेला असता तेथे त्यांच्यात आणि उमाजीराजेंच्या सैन्यात तुंबळ युद्ध झाले आणि इंग्रजांना पराभव स्वीकारावा लागला.उमाजीराजेंचे सैन्य डोंगरात टोळ्या करून राहत असे. एका सैन्य तुकडीत जवळ जवळ ५ हजार सैनिक होते.

■इंग्रजांणसारख्या बलाढ्य शत्रुशी मुकाबला करायचा म्हणजे मोठे मणुष्यबळ असायला हवे .म्हणजेच सैन्य व प्रचंड खर्च आलाच.पण उद्देश महान असल्यामुळे ते साधनाअभावी थांबले नाहीत.ते छत्रपती शिवाजी महाराज यांना आदर्श मानायचे असे खुद्द इंग्रज आधिकारी कॅप्टन मॉकिनटॉस याने नमूद केले आहे. २४ फेब्रुवारी १८२४ ला उमाजीराजेंनी भाबुड्री येथील इंग्रज खजिना लुटून तो देवळाच्या देखभालीसाठी जनतेला वाटला होता. २२ जुलै १८२६ साली आद्यक्रांतिकारक उमाजींचा राज्याभिषेक कडेपठार,जेजुरी या ठिकाणी करण्यातआला.त्यांनी छत्रचामर,अबदागीर,इ.राजचिन्हे धारण केली.दरबारात ते भिक्षुक-पुजारी यांना दक्षिणा व गोरगरिबांना दान देत असत.उमाजीराजेंनी विभागनिहाय सैन्य प्रमुख व त्यांच्या तुकड्या नेमून सर्व भागात तैनात केल्या होत्या आणि त्यांना कामे वाटून दिली होती. तसेच त्यांनी एकमेकांशी संपर्क,दळणवळण,इंग्रजांच्या बातम्या तसेच लोकांचा बातम्या,इ.कामासाठी हेरखातेही निर्माण केले होते.विभागनिहाय गुप्तहेरखाते नेमले होते.सैन्यात व गुप्तहेरखात्यात सर्व जाती-धर्माचे लोक होते. २८ ऑक्टोबर १८२६ साली उमाजीराजेंविरुद्ध इंग्रजांनी १ला जाहिरनामा प्रसिद्ध केला.त्यात उमाजीराजे व त्यांचा साथीदारांना पकडणाऱ्यास मोठ्या रकमेची बक्षिसे व इनाम जाहिर केले व या क्रांतिकारकांना मदत करणाऱ्यास शिक्षा जाहीर केली.पण जनतेने इंग्रजांना मदत केली नाही. यातून उमाजीराजेंची लोकप्रियता दिसून येते.अशाच प्रकारे २ रा जाहिरनामा इंग्रजांनी ८ ऑगस्ट १८२७ साली प्रसिद्ध केला.त्यात बक्षिसाची रक्कम वाढवली व शरण येणाऱ्यास माफी देण्याचे अभिवचन देण्यात आले.तरीही कोणीही मदत केली नाही.कारण लोक उमाजीराजेंना इंग्रजांविरुद्ध एक आशास्थान म्हणून पाहू लागले होते . २० डिसेंबर १८२७ साली उमाजीराजे व इंग्रजांच्या झालेल्या युद्धात इंग्रजांना पराभव पत्करावा लागला. उमाजीराजेंनी ५ इंग्रज सैनिकांची मुंडकी कापून मामलेदाराकडे पाठवली. त्यामुळे इंग्रज चांगलेच धास्तावले.कैप्टन डेव्हिस पासून ते लेफ्टनंट पर्यंत सर्वच लालबुंद झाले. ३० नोव्हेंबर १८२७ ला इंग्रजांना त्यांनी ठणकावून सांगितले की, आज हे एक बंड असले तरी असे हजारो बंडे सातपुड्यापासून सह्याद्रीपर्यंत उठतील व तुम्हास जेरीस आणतील. फक्त इशारा देऊन न थांबता त्यांनी इंग्रजांना सळो की पळो करून सोडले. इंग्रजांनी ३ रा जाहिरनामा उमाजीराजेंविरुद्ध प्रसिध्द करुन बक्षिसाची रक्कम दुप्पट केली.त्याचाही काही उपयोग झाला नाही. जंजिऱ्याचा सिद्दी नवाब याने उमाजीराजे कोकणात गेले असताना त्यांना मदत मागितली होती. २४ डिसेंबर १८३० ला उमाजीराजेंनी आपला पाठलाग करणाऱ्या इंग्रज अधिकारी बॉईड आणि त्याच्या सैन्याला मांढरदेवी गडावरून बंदुका, गोफणी चालवून घायाळ करून परत पाठवले होते आणि काहीचे प्राण घेतले. २६ जानेवारी १८३१ साली इंग्रजांनी ४ था जाहिरनामा प्रसिद्ध केला व त्यात उमाजीराजेंना पकडून देणाऱ्यास ५०००रुपये रोख बक्षिस व २००बिघे (१००एकर)जमीन जाहिर करण्यात आली.पण तरीही कोणीही इंग्रजांना मदत केली नाही.अशा प्रकारे उमाजीराजेंचा भारताचा स्वातंत्र्यासाठी असनाऱ्या लढ्यास सर्व राजे-रजवाडे,संस्थानिक,जनता पाठिंबा देत होते.

■उमाजीराजेंनी १६ फेब्रुवारी १८३१ रोजी इंग्रजी सत्तेविरुद्ध एक जाहीरनामाच प्रसिद्ध केला. त्यात नमूद केले होते की, "लोकांनी इंग्रजी नोकऱ्या सोडाव्यात. सर्व राजे रजवाडे ,सरदार जमीनदार, वतनदार,देशवासीयांनी एकाच वेळी एकत्र येऊन जागोजागी बंड पुकारावे आणि इंग्रजांविरुद्ध अराजकता माजवावी. इंग्रजांचे खजिने लुटावेत. इंग्रजांना शेतसारा,पट्टी देऊ नये.असे करणाऱ्यास नवीन सरकारमधून जहागिरी,इनामे वा रोख पैशाची बक्षीसे मिळतील.ज्यांची वंशपरंपरागत वतने,तनखे,इ.इंग्रज सरकारमुळे गेले असतील ती सर्व त्यांना परत केली जातील. इंग्रजांची राजवट आता लवकरच संपुष्टात येणार आहे व नवीन न्यायाधीष्ठीत राज्याची स्थापना होइल. इंग्रजांना कोणीही मदत करू नये तसे केल्यास नवीन सरकार त्यांना शासन करेल" असे सांगून उमाजीराजेंनी एकप्रकारे स्वराज्याचा पुकारच केला होता. संपुर्ण क्रांतिकारकांचा इतिहासात अशा प्रकारचा व्यापक जाहिरनामा प्रथमच दिसतो.हे भारताच्या इतिहासातील सोनेरी पानच आहे.म्हणूनच उमाजीराजे हे आध्यक्रांतिकारक ठरतात. तेंव्हापासून उमाजी हे जनतेचे राजे बनले. या सर्व प्रकारामुळे इंग्रज गडबडले आणि त्यांनी उमाजीराजेंना पकडण्यासाठी युक्तीचा वापर केला. सावकार, वतनदार यांना मोठमोठी आमिषे दाखवण्यात आली .इंग्रजांनी उमाजीराजेंविरुद्ध ५वा जाहिरनामा प्रसिद्ध केला. माहिती देणाऱ्यास १० हजार रु
पये रोख आणि चारशे बिघे (200एकर) जमीन बक्षीस म्हणून देण्याची घोषणा केली.हा इनाम त्या काळात अगनित होता. त्र्यंबक चंद्रस कुलकर्णी हा फितूर झाला व याने उमाजींराजेंची सर्व गुप्त माहिती इंग्रजांना दिली.

■१५ डिसेंबर १८३१ रोजी भोर तालुक्यातील उतरोली या गावी रात्री बेसावध असताना उमाजीराजेंना इंग्रजांनी पकडले. पुण्यात मामलेदार कचेरीतील एका काळ्या खोलीत त्यांना ३५ दिवस ठेवण्यात आले.अशा या खोलीत उमाजीराजे असताना त्यांना पकडणारा इंग्रज अधिकारी कॅप्टन मॉकिनटॉस दररोज महिनाभर त्यांची माहिती घेत होता. त्यानेच उमाजीराजेंची सर्व हकीकत लिहून ठेवली आहे. उमाजीराजेंवर देशद्रोहाचा खटला चालवण्यात आला आणि या नरवीर राजे उमाजी यांना न्यायाधीश जेम्स टेलर यांनी दोषी ठरवून फाशीची शिक्षा सुनावली. देशासाठी फाशीवर जाणारा पहिले नरवीर उमाजीराजे नाईक ३ फेब्रुवारी १८३२ला पुण्याच्या खडकमाळ आळी येथील मामलेदार कचेरीत वयाच्या ४३ व्या वर्षी हसत हसत फासावर चढले.जीवंतपणी सतत ताठ राहिलेली मान जीव गेल्यानंतरच वाकली. इतरांना दहशत बसावी म्हणून उमाजीराजेंचे प्रेत कचेरीच्या बाहेर पिंपळाच्या झाडाला तीन दिवस लटकावून ठेवले होते. उमाजीराजेंसोबत इंग्रजांनी त्यांचे साथीदार खुशाबा नाईक आणि बापू सोळकर यांनाही फाशी दिली.

■अशा या धाडसी उमाजीराजेंनंतर तब्बल १३ वर्षांनी १८४५ ला क्रांतिकारक वासुदेव बळवंत फडके जन्माला आले. त्यांनी उमाराजेंचे धोरण डोळ्यासमोर ठेवून ३०० रामोशाना बरोबर घेऊन बंड सुरू केले. त्यावेळी दौलती रामोशी हा त्या बंडाचा सेनापती होता.त्यांचा लढा वर्षानुवर्षे प्रेरणा देत राहील

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